टीचर : समंदर में नींबू का पेड़ हो तो तुम नींबू कैसे तोड़ोगे? संता : सर, चिड़िया बनकर। टीचर : गधा कहीं का, आदमी को चिड़िया तेरा बाप बनाएगा?
संता : नहीं...तो समंदर में पेड़ क्या आपका बाप लगाएगा?
चोर पकड़ने की मशीन बनी...अमेरिका में 1 दिन में 9 चोर पकड़े गएचीन में 30इंग्लैंड में 50जापान में 90औरऔरऔरभारत में 1 घंटे में...मशीन चोरी हो गई... :)
एक रात एक घर में चोर घुस आया।
पति-पत्नी ने मिलकर उस चोर को पकड़ लिया।पत्नी, जो बहुत भारी भरकम (108 किलो) थी, चोर को नीचे पटक कर उसके ऊपर बैठ गई।
पति से बोली- आप जाइए और पुलिस को बुला लाइए, तब तक मैं इसे उठने नहीं दूंगी।यह सुनकर पति यहां-वहां देखने लगा।पत्नी खीझकर बोली : इधर-उधर क्या देख रहे हो? जाते क्यों नहीं?पति : मेरी चप्पल नहीं मिल रही।पत्नी के नीचे दबा हुआ चोर कराहते हुए बोला : भाई, मेरी चप्पल पहना जा, पर तू जल्दी कर।
तुम्हारा प्रेम-----
तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी सुंदरता, तुम्हारा सत् किसी भी संशय से सौ गुना अधिक है| श्रद्धा सूर्य के समान है और संशय बादल जैसा है| हाँ, कुछ दिन बादल छाये रहते हैं| उन्हें आने दो| अंत में सूर्य ही चमकेगा|समर्पण अधीनता नहीं है। समर्पण क्या है? यह जानना कि सब जगह सब कुछ ईश्वर का ही है। “मैं" संचालक नहीं हूँ - यह समर्पण है। और इस अनुभूति के साथ गहरे विश्राम, विश्वास और सुकून की भावना आती है। समर्पण से इतना भय क्यों, तुम्हें लगता है तुम कुछ खो दोगे? मैं कहता हूँ इस लोक में और परलोक में तुम पाओगे।
The seed will grow well, the vine will yield its fruit, the ground will produce its crops, and the heavens will drop their dew. I will give all these things as an inheritance to the remnant of this people.
विनियोग :
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप
छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यथं
सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।
1 – ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥
2 – दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥
3 – सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥
4 – शरणागतदीनार्तपरित्राणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥
5 – सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥
6 – रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
7 – त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥
सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥
॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥