तुम्हारा प्रेम----- तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी सुंदरता, तुम्हारा सत् किसी भी संशय से सौ गुना अधिक है| श्रद्धा सूर्य के समान है और संशय बादल जैसा है| हाँ, कुछ दिन बादल छाये रहते हैं| उन्हें आने दो| अंत में सूर्य ही चमकेगा|
समर्पण अधीनता नहीं है। समर्पण क्या है? यह जानना कि सब जगह सब कुछ ईश्वर का ही है। “मैं" संचालक नहीं हूँ - यह समर्पण है। और इस अनुभूति के साथ गहरे विश्राम, विश्वास और सुकून की भावना आती है। समर्पण से इतना भय क्यों, तुम्हें लगता है तुम कुछ खो दोगे? मैं कहता हूँ इस लोक में और परलोक में तुम पाओगे।
समर्पण अधीनता नहीं है। समर्पण क्या है? यह जानना कि सब जगह सब कुछ ईश्वर का ही है। “मैं" संचालक नहीं हूँ - यह समर्पण है। और इस अनुभूति के साथ गहरे विश्राम, विश्वास और सुकून की भावना आती है। समर्पण से इतना भय क्यों, तुम्हें लगता है तुम कुछ खो दोगे? मैं कहता हूँ इस लोक में और परलोक में तुम पाओगे।
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