Monday, 2 March 2015

MA

निकली हैं ...ख्वाहिशे कुछ
 ______________ निकली हैं , ख्वाहिशें कुछ , टहलने ज़रा ! बेज़ार थीं , सदी से , बहलने  ज़रा ! _________________ अपनी -सी हो गई हैं ,  तनहाइयाँ हमारी ! साथी सभी पुराने लगे , हैं जलने ज़रा :)_________________ डॉ. प्रतिभा स्वाति

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