Thursday 16 April 2015

खामोश रात

खामोश रात में लिखी किताब का सुबह सौदा हुआ ।
बिक गये वे मेरे सभी सपने आँखों में बंद बे हिसाब,

सूरज के ढलने के साथ ही ढल गई मेरी आत्म शक्ति,
जब बिकी वो खामोश रात में लिखी यादों की किताब !
 —


कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़न्दगी जैसे,
तमाम उम्र मैं किसी दूसरे के घर में रहा,

तुमको घर से निकलते मिल गई मंज़िल,
और मैं बदनसीब उम्र भर सफर में रहा ।
 
सुनी थी तुमने ग़ज़लों में सिर्फ जुदाई की बातें,
खुद पर बीती तब हो गया ना अंदाजा इसका !



आज ग़ुमसुम सा ये दिन कब गुज़रा पता ही ना चला,
बस खोये थे तुम्हारे ख्यालों में आज फिर रात हो गई.!
 

प्यार

प्यार कहते हैं मोहब्बत कहते हैं,
कुछ लोग इसे बंदगी कहते हैं,

मगर जिन पे हम सब मरते हैं,
हम उन्हें ही ज़िन्दगी कहते हैं..!
 

ता उम्र हम बन जाओगी :

जब दिल की बात छुपाने को हमसे नज़र चुराओगी,
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ हर बार सुनना चाहोगी,

इन सब लम्हों में जान लेना कि "तुम" "तुम" नहीं, 
और फिर "मैं" "मैं" नहीं ताउम्र "हम" बन जाओगी !

बिछा दूँ खुद को तेरे बदले समुन्दर की लहरे बन कर,
मैं गर्क हो जाऊं अगर तू साहिल का किनारा बन जा,

चाहत बन कर गढ़ जाऊं मैं जमीं का सितारा बन कर,
अगर तू चमकता दमकता आसमान का तारा बन जा !
 

हमारा दिल सबेरे का सुनहरा जाम हो जाये,
चरागों की तरह आँखे जलें तो शाम हो जाये,

खुद एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ,
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाये ।

भीगी हुई आँखों का यह मंज़र ना मिलेगा,
घर छोड़ के ना जाओ फिर घर ना मिलेगा,

फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फों की वो शाम,
धूप में तुम्हें साया कोई सर पे ना मिलेगा।

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