झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की, उड़ने लगी बुझे खेतों सेझुर-झुर सरसों की रंगीनी,
मैं नहीं जानता
कि प्रेम
आत्मा करती है
या मस्तिष्क ?
यह साहित्य और
विज्ञान का
अन्तर हो सकता है ;
किन्तु
मैं जानता हूँ KAILASH NATH TRIPATHI
मैं नहीं जानता
कि प्रेम
आत्मा करती है
या मस्तिष्क ?
यह साहित्य और
विज्ञान का
अन्तर हो सकता है ;
किन्तु
मैं जानता हूँ KAILASH NATH TRIPATHI
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