थोड़े समय में, थोड़े खर्चे में बढ़िया काम हो जाय, ऐसा स्वभाव बनाओ जो सब लोग खुश हो जायँ, प्रसन्न हो जायँ | गृहस्थों से ऐसी बातें हमने सुनि हैं, जो माताएँ-बहिनें चीजें अच्छी बनाती हैं, उनका सब आदर करते हैं, पर इस बात का अभिमान नहीं करना चाहिये | अभिमान तो पतन करने वाले का होता है | “निर्ममो निरहंकार:” अहंकार तो छोड़ना है | अरे ! काम-धन्धा करके फिर उससे भी अहंकार कर लो ! इसलिये सुन्दर रीति से काम करो | मान-बड़ाई के लिये नहीं, रूपये-पैसों के लिये नहीं, वाह-वाह के लिये नहीं | अपना अन्त:करण शुध्द करने के लिये, निर्मल करने के लिये, जिससे भगवान् में प्रेम बढे | प्रेम बढाने के लिये काम-धन्धा करो, सेवा करो | काम में चातुर्य बढाने से आपकी माँग हो जायगी |
तीसरी बात – व्यक्तिगत खर्चा कम करो | दान-पुण्य करो | बड़े-बूढों की रक्षा करो | दीनों की रक्षा करो | अभावग्रस्तों को दो | सेवा करो, पर अपने शरीर के निर्वाह के लिये साधारण वस्त्र, साधारण भोजन मकान, उससे अपना निर्वाह करो | भाई-बहिन सबके लिये यह बड़े काम की बात है | जो खर्चीला जीवन बना लेता है वह पराधीन हो जाता है | खर्चा कम करना तो हाथ की बात है और ज्यादा पैदा करना हाथ की बात नही | आजकल लोग खर्चा तो करते हैं ज्यादा और पैदा के लिये सहारा लेते हैं झूठ-कपट, बेईमानी-धोखेबाजी, विशवासघात का | इससे क्या अधिक कमा लेते हैं ? अधिक कमा लें यह हाथ की बात नहीं, खर्चा कम करना हाथ की बात है | जो हाथ की बात है उसे करते नहीं और जो हाथ की नहीं, वह होती नहीं | दुःख पाते रहते हैं उम्रभर | इस बात को समझ लें कि भाई, अपने व्यक्तिगत कम खर्चे से ही काम चला सकते हैं | बढ़िया-से-बढ़िया माल खा लो और चाहे साधारण दाल-रोटी खा लो निर्वाह हो जायगा | यदि शरीर बीमार है तो दवाई ले लो | निर्वाह की दृष्टि से तो कोई बात नहीं, परन्तु स्वाद और शौकीनी की दृष्टि ठीक नहीं है | यह बहुत बड़ी गलती है | इससे बचने के लिये, स्वतन्त्र जीवन बिताने के लिये खर्चा कम करो |
तीसरी बात – व्यक्तिगत खर्चा कम करो | दान-पुण्य करो | बड़े-बूढों की रक्षा करो | दीनों की रक्षा करो | अभावग्रस्तों को दो | सेवा करो, पर अपने शरीर के निर्वाह के लिये साधारण वस्त्र, साधारण भोजन मकान, उससे अपना निर्वाह करो | भाई-बहिन सबके लिये यह बड़े काम की बात है | जो खर्चीला जीवन बना लेता है वह पराधीन हो जाता है | खर्चा कम करना तो हाथ की बात है और ज्यादा पैदा करना हाथ की बात नही | आजकल लोग खर्चा तो करते हैं ज्यादा और पैदा के लिये सहारा लेते हैं झूठ-कपट, बेईमानी-धोखेबाजी, विशवासघात का | इससे क्या अधिक कमा लेते हैं ? अधिक कमा लें यह हाथ की बात नहीं, खर्चा कम करना हाथ की बात है | जो हाथ की बात है उसे करते नहीं और जो हाथ की नहीं, वह होती नहीं | दुःख पाते रहते हैं उम्रभर | इस बात को समझ लें कि भाई, अपने व्यक्तिगत कम खर्चे से ही काम चला सकते हैं | बढ़िया-से-बढ़िया माल खा लो और चाहे साधारण दाल-रोटी खा लो निर्वाह हो जायगा | यदि शरीर बीमार है तो दवाई ले लो | निर्वाह की दृष्टि से तो कोई बात नहीं, परन्तु स्वाद और शौकीनी की दृष्टि ठीक नहीं है | यह बहुत बड़ी गलती है | इससे बचने के लिये, स्वतन्त्र जीवन बिताने के लिये खर्चा कम करो |
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