एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा।पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा-भाई ! यहाँ कैसे पधारे ? कागज.ने कहा-अपने दम पर।जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा अपने दम पर.और तभी हवा का एक दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया।अगले ही पल वह कागज नाली में गिरकर गल-सड़ गया।जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है। पुण्य की अनुकूल वायु का वेग.आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है।
किसका मान ? किसका गुमान ? सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो।संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं।कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले , कोई भरोसा नहीं।इसलिए कर्मों के अधीन परिस्थितियों का.कैसा गुमान ?
किसका मान ? किसका गुमान ? सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो।संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं।कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले , कोई भरोसा नहीं।इसलिए कर्मों के अधीन परिस्थितियों का.कैसा गुमान ?
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